प्रेम एक शांत , विनम्र स्थिति है , जिसे संभाले रखना अत्यंत सरल है। इसके लिए हमे किसी विलक्षण मानसिक , शारीरिक या सामाजिक क्षमता की आवश्यकता नहीं रहती। जितना प्रेम एक व्यस्क अपने में निहित कर सकता है , उतनी ही मात्रा में एक नवजात शिशु भी प्रेम खुद में समायोजित कर सकता है। प्रेम प्रकृति का साम्य रूप है , जब व्यक्ति प्रेम में होता है तो उसे लगता है सब कुछ कितना शुकुन भरा , सुंदर , स्वादिष्ट , मधुर और संगीतमय है। ऐसा इसलिए लगता है क्योकि प्रेम ही प्रकृति की साम्य स्थिति है। जब हम प्रेम करते है तो हम प्रकृति के साथ साम्यावस्था में आ जाते है। तब आप सिर्फ आप नहीं होते है , आप सम्पूर्ण प्रकृति बन जाते है , आप खुद ही श्र्स्टी हो जाते है। इसलिए सब कुछ आनंदमय लगने लगता है , क्योकि वह ऐसे क्षण होते है जब सम्पूर्ण संसार आपको अपना हिस्सा लगने लगता है। और मानव स्वाभाव है कि हमे खुद से जुडी हर चीज बहुत अच्छी लगती है। जब हम प्रेम में होते है तो हम खुद ही संसार हो जाते है। इसलिए समस्त संसार हमे आनंदमय लगने लगता...
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