BHAAGI HUI LADKIYAN

"लड़की घर से भाग गयी" एक ऐसा वाक्य जो भारतीय समाज में किसी भी धर्म , जाति या तबके के परिवार में भूचाल लाने के लिए काफी है।

ये अतिश्योक्ति तो नहीं होगी यदि कहा जाये की कोई भी परिवार में किसी की मृत्यु तो सेहन कर सकता है परन्तु लड़की का घर  भागना उसके पुरे परिवार पे वज्रपात सा गिरता है। और ऐसा कदम उठाने के बाद सम्पूर्ण समाज की आलोचना, बहिष्कार व तिरस्कार पर मानो उस लड़की का एकाधिकार सा होगया हो।



शायद हम और हमारा समाज किसी बलात्कार के अपराधी के साथ भी ऐसा हीन भाव नहीं दर्शाते होंगे जैसा घर से भागी हुई एक लड़की के प्रति दिखते है। जिन दोस्तों, सहेलिओ या पडोसियो के साथ उसका बचपन बीता था, वो उस लड़की से ऐसे दूर भागते है मानो कोई जानलेवा छुआछूत की बीमारी होगयी हो।

अपनी एक चाहत को पूरा करने के लिए उठाया गया कदम उसके लिए अभिशाप से कम नहीं होता।  जो लड़की अकेले चौराहे की दुकान तक नहीं जाती थी वो आज अकेली पुरे समाज का बहिस्कार सहन कर रही है और हम पुरजोर कोशिश करते है की उस लड़की का जीना मुश्किल हो जाये। अपने घर की लड़कीयो को उसका उदाहरण दिया जाता है की उसके जैसी हरकत मत करना, हवाला दिया जाता है - " पगड़ी, इज़्ज़त, समाज" का।  मानो जैसे इन्ही के परिवार के भरोसे ब्रह्मा ने संसार की रचना की है।

और ये बहिष्कार, तिस्कार, निंदा और आलोचना सिर्फ लड़की की ही क्यों ? जहा तक मेरी समझ है, वो अगर भागी है तो अकेले तो भागी नहीं होगी।

तो संस्कृति, समाज, मर्यादा का सारा बोझ लड़की के कंधे पे ही क्यों रख दिआ जाता है ? अगर ये समाज लड़का और लड़की दोनो से मिलकर बना है तो इसकी मर्यादा का बीड़ा भी दोनों  सिर होना चाहिए ना !!!!

मैं ये इसलिए नहीं कह रहा की मुझे कोई वाह वाही चाहिए या मैं FEMINIST बनने की राह पे हूँ, लेकिन ये सत्य है की "परिवार क्या होता है और उसकी नीव में क्या है, ये उस घर की से बेहतर कोई नहीं जनता"

हम एक घटना देखते है और उसी आधार पर जहाँ से जीहुजूरी करने में फायदा हो रहा हो उसके साथ हो लेते है। पूर्ण घटनाक्रम से किसी को मतलब ही नहीं है।

माँ - पिता का दर्द तो सबको दिखाई देता है , लेकिन जो लड़की अपना सम्पूर्ण जीवनकाल एक परिवार को दे चुकी हो, अपना सर्वस्व समर्पित कर चुकी हो, क्या उसके लिए सच में ये कदम उठा पाना इतना आसान होता होगा ? क्या उसके कानो में माँ की लोरी, मन में पिता का स्नेह और आँखों में भाई-बहनो का शरारतो भरा बचपन नहीं दौड़ गया होगा ? हर पल, हर क्षण, हर लम्हे में वो किस असमंजस से गुजरती होगी, क्या ये कभी सोचा है हमने ?

माँ अकेले है घर कैसे संभालेगी? पिता जी समय पे दवाइया कैसे लेंगे ? छोटा भाई डाट से बचने के लिए किसके पास जायेगा ? क्या ये सब उस लड़की के मन में बवाल नहीं मचाता होगा ?

मैं भलीभांति अवगत हूँ की कोई रिश्ता कितना महत्वपूर्ण होता है, खासकर जब वो माता-पिता का रिश्ता हो। लेकिन हमे ये भी समंझने की कोशिश करनी चाहिए की किसी रिश्ते को छोड़ के जाने के पीछे कितना लम्बा और पीड़ादायक घटनाक्रम होता है। वो सिर्फ वह परिवार ही जानता है , बाहर तमाशबीनो की तरह ताने मारने वाले हम समाज के ठेकेदारों को इसका तिनका भर भी अंदाज़ा नहीं होता।

अरे सच तो ये है की हमे फर्क भी नहीं पड़ता उस परिवार का क्या हाल है ? हमे बस SOCIAL MEDIA पे POST करने और उन पर विभिन्न तबको के समाजी ठेकेदारों की वाह-वाही लूटनी होती है। इसकी एक मिशाल है ये POST :-
"घर से भागी हुई बेटियां 
अपने साथ भगा ले जाती 
है आसपास की बेटिओ के 
सपने और पढ़ने लिखने की 
आज़ादी "

जिस संकिर्ण बुद्धि की पैदाइश ये POST है ,  उससे भी ज्यादा संकीर्ण उन लोगो के LIKES और SUPPORT में किये गए COMMENTS जो सम्पूर्ण रूप से इस POST का समर्थन करते है। 

ये POST खुद एक सबूत है हमारी दोहरी मानसिकता और तुच्छ बुद्धि का। एक ऐसे समाज का जिसका ये मानना है की चाहे कुछ भी हो, सारी बंदिशे सिर्फ घर की बेटिओ पर ही लगेंगी। 

मैं बस ये सवाल करना चाहता हूँ, ये समाज के ठेकेदार, ये महान विद्वान्, बुद्धिजीवी लोग उस समय कहा चले जाते है जब "एक लड़की प्यार में धोखा खाकर, परिवार से तिरस्कृत होकर और पेट में २ माह का बच्चा लिए हुए, अपने ही दुपट्टे से झूल जाती है। "

उस समय इस समाज को उस मक्कार प्रेमी और उस क्रूर माँ-बाप की याद नहीं आती, जिनके तिरस्कार और अपमान से टूट कर उस लड़की ने मर जाना ही सही समझा ? उस माँ की ममता, उस बाप का प्रेम उस समय किस तरह की क्रूरता का शिकार होगा जो अपनी गर्भवती बच्ची को घर से निकलते हुए उनका ह्रदय नहीं कांपता।

और उन लोगो का क्या जो मर्यादा के नाम पे बीच गांव में लड़किओं को मार देते है ? उस समय ये सरे ठेकेदार कहाँ घुइएं की खेती क्र रहे होते है ? इस स्थिति में कबीर जी का एक दोहा याद आता है :-
भला किसी का कर न सको तो, बुरा किसी का मत करना। 
पुष्प नहीं बन सकते तो तुम कांटे बन कर मत रहना। 

मैं हर माँ-बाप से यही प्रार्थना करूंगा की अपने बच्चों के साथ इतना सख्त और क्रूर मत होजाइये को वो अपने मन की बात न कर सके और आपको छोड़ के जाने के इलावा उनके पास कोई सहारा न रहे।

हर वो लड़की जो घर से भागी है उसको एक ही सुझाव दूंगा " इतना बड़ा कदम उठाया है. तो दिल और हिम्मत भी बड़ी रखना।  तुमने समाज की व्यवस्थाओ को चुनोती दी है, उसका बहिस्कार किआ है।  अब समाज भी पुरे जोर के साथ तुम्हे चुनौती देगा और बहिष्कार करेगा। अगर सच्चे प्रेम के लिए ये कदम उठाया गया है तो निश्चय ही जीत तुम्हारी होगी और अगर हार भी गयी तो फिर शुरुआत करना।

"ये समाज जितना क्रूर है, ये प्रकृति उतनी ही दयालु है। ये सबको हराती है, सिखाती है और फिर उठ खड़े होने  की ताकत देकर लड़ने का हौसला देती है। "


- आलोक सिंह  


Comments

  1. Seriously hum sab us ladki se door ho jaate bhale hi hum khud ladki h fir bhi us ladki ki feeling ko samjh paye but hands off Alok aapne samjha aur samjhaya ki wo bhi ik human h uski bhi feeling h wo galat nahi galat hum h !!!thank you

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