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BHAAGI HUI LADKIYAN

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"लड़की घर से भाग गयी" एक ऐसा वाक्य जो भारतीय समाज में किसी भी धर्म , जाति या तबके के परिवार में भूचाल लाने के लिए काफी है। ये अतिश्योक्ति तो नहीं होगी यदि कहा जाये की कोई भी परिवार में किसी की मृत्यु तो सेहन कर सकता है परन्तु लड़की का घर  भागना उसके पुरे परिवार पे वज्रपात सा गिरता है। और ऐसा कदम उठाने के बाद सम्पूर्ण समाज की आलोचना, बहिष्कार व तिरस्कार पर मानो उस लड़की का एकाधिकार सा होगया हो। शायद हम और हमारा समाज किसी बलात्कार के अपराधी के साथ भी ऐसा हीन भाव नहीं दर्शाते होंगे जैसा घर से भागी हुई एक लड़की के प्रति दिखते है। जिन दोस्तों, सहेलिओ या पडोसियो के साथ उसका बचपन बीता था, वो उस लड़की से ऐसे दूर भागते है मानो कोई जानलेवा छुआछूत की बीमारी होगयी हो। अपनी एक चाहत को पूरा करने के लिए उठाया गया कदम उसके लिए अभिशाप से कम नहीं होता।  जो लड़की अकेले चौराहे की दुकान तक नहीं जाती थी वो आज अकेली पुरे समाज का बहिस्कार सहन कर रही है और हम पुरजोर कोशिश करते है की उस लड़की का जीना मुश्किल हो जाये। अपने घर की लड़कीयो को उसका उदाहरण दिया जाता है की उसके जैसी हरकत मत करना, हवाला

BURA WAQT - BAD TIMES

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जब लिखने बैठता हू तो समझ नहीं आता कि कहा से शुरुआत करू , मन में इतनी बाते है किसको पहला अवसर दू जो मेरे मन से निकल के मेरे कलम के जरिये इन पन्नो में छप जाये और मुझे शुकुन से जीने दे।  विचारो की ऐसी सुनामी उफ़न रही है मन में कि  किसी एक को पकड़ना और सुनामी में डूब कर उस विचार को बाहर निकालना असम्भव सा लग रहा है।   कभी सोचा नहीं था की मैं खुद पे तरस खाऊंगा , लेकिन आज आ रहा है।  कहा खो जाता हूँ पता नहीं चलता , बस जब होश आता है तो खुद को कमरे में अकेला और आखो को पानी में गिला महसूस करता हूँ।  दुनिया कहती है छोटी - छोटी चीजों में खुशिया ढूंढो।  बस मैंने भी यही किया, हर छोटी चीज में खुश होने लगा। किसी बड़े बदलाव की चाहत ही नहीं की ,बस यही चाहा की अपने परिवार के साथ यही छोटी - छोटी खुशियां जीता चला जाऊ।  लेकिन अब तो एक अरसा हो गया कोई छोटी ख़ुशी मनाये हुए ,कैसे उम्मीद करलू  कि  कुछ बहुत अच्छा होगा।  ऐसा नहीं है की टूट चुका हूँ , हार चुका हु , मैं तो लड़ रहा हूँ , खुद से और अपने वक़्त से , देखता हूँ कितना चलता है ये बुरा वक़्त।  - आलोक सिंह 

PREM - LOVE

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प्रेम एक शांत , विनम्र स्थिति है , जिसे संभाले रखना अत्यंत सरल है।  इसके लिए हमे किसी विलक्षण मानसिक , शारीरिक या सामाजिक क्षमता की आवश्यकता  नहीं रहती।  जितना प्रेम एक व्यस्क अपने में निहित कर सकता है , उतनी ही मात्रा में एक नवजात शिशु भी प्रेम खुद में समायोजित कर सकता है।  प्रेम प्रकृति का साम्य रूप है , जब व्यक्ति प्रेम में होता है तो उसे लगता है सब कुछ कितना शुकुन भरा , सुंदर , स्वादिष्ट , मधुर और संगीतमय है।  ऐसा इसलिए लगता है क्योकि प्रेम ही प्रकृति की साम्य स्थिति है।  जब हम प्रेम करते है तो हम प्रकृति के साथ साम्यावस्था  में आ जाते है।  तब आप सिर्फ आप नहीं होते है , आप सम्पूर्ण प्रकृति बन जाते है , आप खुद ही श्र्स्टी हो जाते है।  इसलिए सब कुछ आनंदमय लगने लगता है , क्योकि वह ऐसे क्षण  होते है जब सम्पूर्ण संसार आपको अपना हिस्सा लगने लगता है।  और मानव स्वाभाव है कि  हमे खुद से जुडी हर चीज बहुत अच्छी लगती है।  जब हम प्रेम में होते है तो हम खुद ही संसार हो जाते है।  इसलिए समस्त संसार हमे आनंदमय लगने लगता है।  जरा सोच के देखिये कि  आपमें कितनी अपार क्षमता और शक्ति समाहित

KRODH - ANGER

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गुस्सा या क्रोध एक  क्षणिक प्रभाव के साथ आता है।  ये विनाशकारि तो है लेकिन दीर्घकालिक नहीं।  ये उस तरह है कि कोई व्यक्ति  GYM में जाकर एक बार में १५०-२०० KG का वजन उठा लेता है।  जिस तरह  GYM में उठाये गए वजन को कुछ क्षण के लिए तो उठाये रख सकते है , ये आपकी शारीरिक क्षमता के अनुसार ज्यादा या कम हो सकती है , परन्तु ये निश्चित है ये स्थाई और दीर्घकालिक नहीं हो सकता।  गुस्से का आचरण भी कुछ इसी तरह का है , कोई भी व्यक्ति अपनी शारीरिक , मानसिक तथा सामाजिक क्षमता के आधार पर क्रोध को अपना तो सकता है परन्तु क्रोध की उसी तीव्रता को लम्बे समय तक संभाल नही सकता।  गुस्से का विध्वंसकारी प्रभाव मानव मस्तिष्क से शुरू होता है सामाजिक स्तर पर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।  जब व्यक्ति शारीरिक , मानसिक और सामाजिक रूप से क्षमतावान होता है और उस स्थिति में क्रोध करता है तो कुछ प्रारम्भिक क्षणो में लगता है कि  वह अपने क्रोध से दुसरो को नुकसान पहुंचा रहा है।  परन्तु हकीकत इसके बिलकुल विपरीत होती  है।  क्रोध सबसे पहले हमारी मानसिक क्षमताओ को दीमक की तरह गला देता है , जिसके फलस्वरूप हमा

Tere Khat.....

तेरे खत छुपा के रखे है मैंने किताब में, लिखा हर शब्द जोड़ रही हूं इश्क़ के हिसाब में।  ज़माने की रुस्वाइयों से ज़रा सेहमा हुआ है दिल, मेरी नज़रो में पढ़ना वो, जो चाहिए जवाब में।  मेरे प्यार को दरकार नहीं जिस्म की नुमाइश की, महक इश्क़ की समेटे हूं, मैं मेरे हिजाब में।  एक ऐतबार बस तेरी वफ़ादारिओ का है, वरना फिरते है भेड़िये आशिक़ो के नकाब में। 

Aaj Bhi.

बहुत चीजे अधूरी पड़ी आज भी, तुझसे दुरी मज़बूरी बनी है आज भी।  दिल का बंजर जब बरसात मोहब्बत की ढूंढता है , ये नज़रे तेरे चेहरे पे रूकती है आज भी।  नौकरशाही में पिस रहे हैं हम तो पेट की खातिर , शुकुन दिल का पाने को "आलोक" लिखता है आज भी।  

Kaun Sa Hain.

अंदर सैलाब है पर चेहरे पे मौन सा है।  मैं ही जानते हूं मुझमे सोया जानवर कौन सा है। ख़ामोशी को नादानी समझने की भूल ना करना। मुझे सब इल्म है जो तेरे घूंघट के पीछे ढोंग सा है। ज़माने के तानो की मुझे फिक्र नहीं होती। अच्छे से जनता हूँ, धुला दूध का, ये ज़माना कौन सा है।

Hota Hoon Yaaro Mei

ख्वाबों के आसमां में  नए रंग पिरोता हूँ।  होता हूँ यारो में तो मैं कुछ और होता हूँ।।