Aaj Bhi.
बहुत चीजे अधूरी पड़ी आज भी,
तुझसे दुरी मज़बूरी बनी है आज भी।
दिल का बंजर जब बरसात मोहब्बत की ढूंढता है ,
ये नज़रे तेरे चेहरे पे रूकती है आज भी।
नौकरशाही में पिस रहे हैं हम तो पेट की खातिर ,
शुकुन दिल का पाने को "आलोक" लिखता है आज भी।
तुझसे दुरी मज़बूरी बनी है आज भी।
दिल का बंजर जब बरसात मोहब्बत की ढूंढता है ,
ये नज़रे तेरे चेहरे पे रूकती है आज भी।
नौकरशाही में पिस रहे हैं हम तो पेट की खातिर ,
शुकुन दिल का पाने को "आलोक" लिखता है आज भी।
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