Tere Khat.....
तेरे खत छुपा के रखे है मैंने किताब में,
लिखा हर शब्द जोड़ रही हूं इश्क़ के हिसाब में।
ज़माने की रुस्वाइयों से ज़रा सेहमा हुआ है दिल,
मेरी नज़रो में पढ़ना वो, जो चाहिए जवाब में।
मेरे प्यार को दरकार नहीं जिस्म की नुमाइश की,
महक इश्क़ की समेटे हूं, मैं मेरे हिजाब में।
एक ऐतबार बस तेरी वफ़ादारिओ का है,
वरना फिरते है भेड़िये आशिक़ो के नकाब में।
लिखा हर शब्द जोड़ रही हूं इश्क़ के हिसाब में।
ज़माने की रुस्वाइयों से ज़रा सेहमा हुआ है दिल,
मेरी नज़रो में पढ़ना वो, जो चाहिए जवाब में।
मेरे प्यार को दरकार नहीं जिस्म की नुमाइश की,
महक इश्क़ की समेटे हूं, मैं मेरे हिजाब में।
एक ऐतबार बस तेरी वफ़ादारिओ का है,
वरना फिरते है भेड़िये आशिक़ो के नकाब में।
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